युगाब्द 5126, वि.सं 2081
श्रावण मास, शुक्ल पक्ष, सप्तमी
रविवार, 11 अगस्त 2024
आज का दिन सभी के लिए मंगलमय हो। भारत की विशिष्ट कुटुम्ब परम्परापरिवार व पारिवारिक प्रसन्नता के सूत्र हमारे सामाजिक जीवन में अनादि काल से सभी परिवारों में सामूहिक पारस्परिक कर्त्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों के सहज निर्वहन की सर्वाधिक उदात्त परम्परा रही है। परिणामस्वरूप इस देश में विवाह संस्था की नींव जीवन मूल्यों के संस्कारों के बंधनों के कारण मजबूत रही है। जिसमें सात संकल्पों के साथ-साथ सात जन्मों का सम्बन्ध माना गया। इसके अतिरिक्त माता-पिता के लिए ‘मातृ देवो भव:, पितृ देवो भव:’ का भाव परिवार में रहता है। इसलिए परिवार में छोटों का व बड़े बुजुर्गों का यथोचित सहज सम्मान व ध्यान रखने की सुसंस्कारित उत्कृष्ट परम्परा रही है, और है भी।

इसीलिए, विवाह विच्छेद या तलाक, अनाथालय व वृद्धाश्रम का हिन्दू जीवन में कोई स्थान नहीं रहा है। हर व्यक्ति का परिवार कुटुम्ब उसके बाल्यकाल से मृत्यु पर्यन्त पूरे दायित्व के साथ उसके योगक्षेम की चिन्ता रखता था, और हर संकट में सहज ही सहयोग भी करता था। लेकिन, आज जीवन की स्पर्द्धा भरी दौड़ में अथवा अति महत्त्वाकांक्षा के दबाव में हममें से कई लोग अपने परिवारजनों व कुटुम्ब जनों के प्रति न्यूनाधिक उपेक्षा का भाव भी दिखाने लगे हैं। कुछ लोग अपने तात्कालिक हित-अहित व संकुचित निजी स्वार्थ या प्रतिलाभ का आकलन कर अपने परिवार या कुटुम्ब में भी सहयोग असहयोग का निर्णय व्यापारिक लेन-देन शैली में अनुपात तय करने की धृष्टता भी कर लेते हैं। यह सर्वथा अवांछित होते हुए भारत की परिवार संस्था की भावनाओं के विपरीत कृत्य है।
🙏🏻🌹🕉🚩🙏

Share

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *