(ओमप्रकाश ‘सुमन’)
पलियाकलां- खीरी दुलर्भ सिक्कों व नोटो के संग्रहकर्ता द्वारा NCC “एक भारत श्रेष्ठ भारत” शिविर में प्रदशनी लगाई।
12 दिवसीय एक भारत श्रेष्ठ भारत कैंप 26 यूपी बटालियन एनसीसी द्वारा एक भारत श्रेष्ठ भारत कैंप गोल्डन फ्लावर सीनियर सेकेंडरी स्कूल पलिया में चल रहा था, जिसमें दुर्लभ सिक्को व नोट की प्रदर्शनी लगाई गई |
छात्र जीवन से दुर्लभ सिक्को व नोट का करते है संग्रह
गुरजीत वालिया पलिया शहर में रहते है इनका सिक्को व विदेशी नोटो का संग्रहीत करने शौक है जो अधभूत है। उनके संग्रह में भारत का 1/12 आना चाँदी व ताँबे के, आधा आना, एक आना 1929, दो
आना 1924 एक पैसा दो पैसा 1957 तीन पैसा, पाँच पैसा, दस पैसा, बीरा पैसा 25 पैसा 50 पैसा, 25 पैसा 1919, 50 पैरा 1919, 1रु के चाँदी के सिक्के, 1,2,5,10 रुपया के अलग अलग धातु के सिक्के व शाह आलम II. शाहमहम्मद, मुगल काल एस्ट इंडिया कम्पनी, ग्वालियर, चित्रकूट उदयपुर, इंदौर, हैदराबाद, किन्नर, जुनागढ़, चौहान, चोला राजवंश, रियासतों के सिक्के RBI द्वारा विभिन्न जयंती के सिक्के ।
130 देशो के नये व पुराने सिक्के, यूरोप के देशों कि पुरानी मुद्रा, इंगलैंड 1902 की पैनी श्री लंका सिलोन दस रुपये का नोट ।
भारत से अलग होने पर वर्मा को दिया RBI के नोट, 1,2,5,10,50, 100, के नोट के गर्वनर के द्वारा अक्तर कीये हुए नोट और बहुत से अध्भुत संग्रह है ।
रिजर्व बैंक की स्थापना से पहले गवर्नर ऑफ इंडिया का नोट |
कोड़ी से सिक्को का इतिहास एक ऐसी चल धरोहर है, जिसमें किसी भी देश के उद्भव काल, संस्कृति, कला, परम्परा और इतिहास को दर्पण की भाति साफ तौर पर देखा जा सकता है। इस सब सिक्को की जानकारी स्कूलो में जा प्रदशनी लगाकर देते रहते है अभी तक छः प्रदशनी लगा चुके है ।
गुरजीत वालिया जी कहते है, लोगो-बच्चो को सिक्कों का संग्रह दिखा सराहना पा कर मन को एक सुकुन मिलता है ।
विकसित मानव सभ्यता का पहला सिक्का कब जारी हुआ इसके बारे में तो निश्चित रुप से कुछ भी कहना मुश्किल है लेकिन इतिहास को अपने संग्रह में गुरजीत वालिया जी के सिक्के संग्रहकर्ता के पास सुगमता से देखा जा सकता है।
37,38 साल क सफर तय कर ये शौक एक मील का पत्थर बन गया है।
इस महंगे शौक को पालना, मुद्रा खर्च करके ही पूरा किया जा सकता है और इसके लिए प्यांप्त समय निकाल पाना बड़ा मुश्किल कार्य है जब संग्रह के यह शौक को समय पैसे की बरबादी समझा जाता हो । सिक्के व नोट एकत्र करने की प्ररेणा उनके पिता ने दी पिता स्व.मदन मोहन सिंह जी 1950,51 में पलिया आये व अपना मोटर मकैनिक (इंजिन्यर) का कार्य करते थे, पलिया कलों में मदन बाबूजी, मदन साहब, मकैनिक साहब के नाम से जाना जाता था।
गुरजीत वालिया कभी पर्यटन स्थलो पर उन्होने परेशानियों का भी सामना करने पर माता, पिता, परिजनो व दोस्तो के सहयोग व उत्साहवर्धन से किसी भी परेशनी से नही घबराये।
गुरजीत वालिया ने वताया शरुवाती दोर में दुदवा नेशनल पार्क में पर्यटको के आने पर मुझे अलग अलग सिक्के मिल जाते उन सिक्को को को देख अच्छा लगता बस इसी तरह में आगे और आगे बढ़ रहा हु, दुदवा नेशनल पार्क का भी मेरे संग्रह मे बहुत सहयोग रहा ।
गुरजीत वालिया अपना नाम उत्तर प्रदेश बुक आफ रिकार्ड, लिम्का बुक आफ रिकार्ड गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड, में अपना नाम दर्ज कर जिले और प्रदेश का नाम रोशन करना चाहते है ।
एक भारत श्रेष्ठ भारत कैंप में आए हुए अलग-अलग राज्यों से आए एनसीसी कैडेट ऐ व अधिकारी वर्ग ने सिक्कों के संग्रह की प्रदर्शनी को निहारा व सिक्कों के इतिहास को जान उत्साहित हुए ।
एनसीसी द्वारा इनको प्रोत्साहन पत्र दे उत्साह वर्धन किया ।