(ओमप्रकाश ‘सुमन’)
पलियाकलां(खीरी)
नगर के जिला पंचायत बालिका इंटर कालेज में भारत चीन युद्ध के महानायक, परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतान सिंह की 100वीं जयंती हर्षोल्लास के साथ मनायी गई।उक्त अवसर पर मुख्य अतिथि पलिया खण्ड शिक्षाधिकारी ब्रजराज सिंह ने कहा कि मेजर शैतान सिंह अदम्य साहस व शौर्य के दिनमान थे।1962 में चीन ने हिंदी चीनी भाई भाई नारे को धता बताते हुये भारत पर हमला कर दिया।18 नवम्बर1962 को चुशुल क्षेत्र में रेजांगला दर्रे पर जमीन से 17000 फिट की चौकी पर चीनी सेना ने भयंकर गोलाबारी करते हुये हमला किया।कुमांयू रेजीमेंट की टुकड़ी के नायक मेजर शैतान सिंह ने कमांड को सूचित किया।उन्हें चौकी से हटने को कहा गया।लेकिन मेजर शैतान सिंह व उनके साथियों ने सहादत को चुना।उनके पास केवल123 सैनिक थे।100हथगोले,400राउंड बुलेट व पुरानी राइफलें थीं।उनके पास था,साहस व भारतमाता की रक्षा करने का दृढ़ संकल्प।मेजर शैतान सिंह उनके साथियों ने 1300 चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया,लेकिन उनके 114 साथी शहीद हो गये।जीवित रहते उन्होंने एक भी चीनी को भारत की सीमा में नहीं घुसने दिया।देश के महानायक का नाम भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित रहेगा।प्रधानाचार्य कृष्ण अवतार भाटी ने कहा कि घायल होने पर उनके साथी उन्हें सुरक्षित स्थान पर ले जाना चाहते थे,लेकिन उन्होंने कहा आप मशीनगन को रस्सी के सहारे मेरे पैरों से बांध दो, मैं गोलियां चलाऊंगा, आप सभी जाओ।तापमान माइनस 30 डिग्री था।बर्फ10से 20 फिट तक जम चुकी थी।लेकिन महावीर ने हिम्मत नहीं हारी,अंतिम सांस तक गोलियां चलती रहीं।तीन माह बाद बर्फ हटाई गई,महावीर का हड्डियों का ढांचा मुस्तेदी के साथ मशीन गन को पकड़े था।मरणोपरांत भारत सरकार ने1963 में उन्हें परमवीर चक्र से विभूषित किया।सामाजिक विज्ञान शिक्षिका शालिनी चौधरी ने कहा कि मेजर शैतान सिंह ने गोलियों खत्म होने पर अपने बाहुबल से कई चीनियों को हताहत कर दिया था।चीनी सैनिक उनकी हुंकार से सहम जाते थे।उनके बलिदान होने के बाद भी काफी समय तक चीनी उनके डर से चौकी पर नहीं आये थे।मेजर शैतान सिंह का बलिदान सदैव समस्त भारतीयों के लिये प्रेरणास्रोत रहेगा।कार्यक्रम का शुभारंभ भारतमाता व मेजर शैतान सिंह के पूजन अर्चन से हुआ।कार्यक्रम में विद्यालय के समस्त परिवार की सार्थक उपस्थिति रही।