(ओमप्रकाश ‘सुमन’)
पलियाकलां- खीरी लखीमपुर 11 अक्टूबर। बुधवार की शाम डीएम महेंद्र बहादुर सिंह ने कलेक्ट्रेट सभागार में धान की कटाई को लेकर सभी एसडीएम, बीडीओ और कृषि विभाग सहित संबंधित विभागों के अधिकारियों के साथ बैठक की। डीएम ने अफसरों को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि किसी भी सूरत में पराली न जलने पाए।
डीएम महेंद्र बहादुर सिंह ने कहा कि धान की कटाई करने वाले किसानों से निरंतर वार्ता करते रहें कि पराली या फसल अवशेष को कतई न जलाया जाए। किसानों को प्रेरित कर पराली गौशाला में दान करायी जाए। कर्मचारियों को फील्ड में रहकर पराली नही जलाए जाने के लिए निगरानी करने के लिए निर्देशित किया जाए। मशीन से धान कटाई करने वाले लोगों से भी वार्ता कर उन्हें भी चेतावनी दी जाए कि यदि कोई भी कम्बाइन हार्वेस्टर सुपर स्ट्रा मैनेजमेन्ट सिस्टम अथवा स्ट्रारीपर अथवा स्ट्रारेक एवं बेलर या अन्य फसल अवशेष प्रबन्धन यन्त्रों के बगैर चलते हुयी मिली तो उसको तत्काल सीज करते हुये कम्बाइन मालिक के स्वयं के खर्च पर सुपर स्ट्रा- मैनेजमेन्ट सिस्टम लगवाकर ही छोड़ा जाये। मशीन से धान कटाई करने के बाद यदि कही पर पराली जलाने की घटना होगी तो किसान के साथ ही मशीन के स्वामियों पर भी कार्रवाई की जाएगी। इसके लिए वह किसानों से पराली नहीं जलाए जाने के लिए घोषणा पत्र ले।
डीएम महेंद्र बहादुर सिंह ने कहा कि जिस भी लेखपाल के क्षेत्र मे फसल जलाने की घटना होगी उसके विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी। इसकी रोकथाम के लिए निरतंर निगरानी करते रहें। सभी ग्राम प्रधान, लेखपाल, ग्राम सचिव अपने-अपने क्षेत्र में सक्रिय रहते हुए किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन की जानकारी दें। सभी बीडीओ ग्राम प्रधानों के साथ बैठक कर जागरूक करते हुए आमजन को भी जागरूक करें। उन्होने निर्देश दिए कि फसल अवशेष के उचित प्रबन्धन के लिए अधिक से अधिक किसानों को डि-कम्पोजर वितरित करें।
सीडीओ अनिल कुमार सिंह ने कहा कि पराली के उचित प्रबन्धन से हम खेतों की उर्वरा शक्ति को बढ़ा सकते हैं। उप्र शासन व जिला प्रशासन एनजीटी द्वारा जारी किये गये निर्देशों का कड़ाई से अनुपालन कराने के लिये प्रतिबद्ध है। जबकि किसानों द्वारा पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिये गठित टीमें कड़ी निगरानी करें। इसके साथ ही उन्होंने किसान को सचेत किया कि पराली जलाने पर रोक लगाने के लिये जुर्माना लगाये जाने का प्राविधान है। पराली जलाने से पर्यावरण को तो नुकसान होता ही है, किसानों के खेतों पर भी इसका नकारात्मक असर पड़ता है, जिससे अंततः किसान, जिले, राज्य व देश को भी नुकसान होता है।