(ओमप्रकाश ‘सुमन’)

विश्वकर्मा पूजा का इतिहास

पलियाकलां-( खीरी)विश्वकर्मा जयंती की जड़ें प्राचीन भारतीय लेखन और शास्त्रों में हैं। सबसे पुराने हिंदू धर्मग्रंथों में से एक, ऋग्वेद में, विश्वकर्मा जयंती का सबसे पहला उल्लेख मिलता है। हिंदू पौराणिक कथाओं में विश्वकर्मा को ब्रह्मांड के खगोलीय डिजाइनर के रूप में माना जाता है। उन्होंने देवताओं के लिए कई हथियारों का निर्माण किया, जैसे भगवान शिव का त्रिशूल, भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र, लंका राजा रावण का पुष्पक विमान और इंद्र का वज्र, द्वारका, भगवान कृष्ण का क्षेत्र और पांडवों के लिए माया सभा। उन्होंने चारों युगों के देवताओं के लिए अनेक महल भी बनवाये। समय के साथ, यह त्योहार कारीगरों, श्रमिकों और कलाकारों के लिए भगवान विश्वकर्मा का सम्मान करने और अपने विभिन्न उद्योगों में सफलता, नवाचार और कौशल के लिए उनका आशीर्वाद मांगने का एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम है। आज के दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा के साथ ही सभी कारखाने में सभी मशीनों की सफाई उनका पूजन आदि किया जाता है।

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