।। पुस्तक समीक्षक- यू पी मिश्रा।।

पुस्तक “कुछ नए कुछ पुराने” की समीक्षा यू पी मिश्रा (अंग्रेजी ,हिंदी और संस्कृत के गहन ज्ञाता ) द्वारा छह प्रमुख बिंदुओं के आधार पर की गई है जो कि निम्न प्रकार है।
1. समर्पण का पृष्ठ‌ ही ध्यानाकर्षण के लिए पर्याप्त है। प्रायः लेखक एवं कवि अपनी रचनायें – पिता-माता, गुरु या किसी वयोवृद्ध को समर्पित करते हैं किन्तु लेखक ने इसे अपने आने वाली पीढी पौत्र को समर्पित किया है। ये आशीर्वाद अबोध पौत्र को ज्ञान के क्षेत्र में आगे ले जाने वाला सुबोध आशीर्वाद है।
2. हरबार हार करने भी जो न सुधरे वह पाकिस्तान है। लेख ऐतिहासिक गरिमापूर्ण है। अतीत की कटु घटनायें भविष्य की धरोहर होती है। सामान्य ज्ञान की दृष्टि से सम्मानित लेख है। इसमे राजनीति, इतिहास, शौर्य एवं नई पुरानी स्मृतियों को सजगता पूर्वक संजोया गया है।
3. प्राचीनता की स्मृतियों में सर्वाधिक ध्यानाकर्षण करने वाला अध्याय नौटंकी है। एक ऐसी लोककला जो सदियों से चली आ रही थी, को समाप्ति को ओर देखकर कोई भी हृदयवान लेखक द्रवित हो भी सकता है और अपनी सशक्त लेखनी के दम पर द्रवित कर भी सकता है। यही यहाँ हुआ है। इसे पढ़कर अर्द्ध शताब्दी पूर्व की स्मृतियों में चला गया और सुखद अनुभूतियों में खो सा गया।
4. बाघ संरक्षण, वन्य जीव दिवस, प्रकृति के साथ सामंजस्य और सतत विकास , प्रदूषण, प्लास्टिक प्रदूषण एवं पर्यावरण दिवस, हमारी शक्ति हमारा ग्रह,अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस ,इत्यादि अध्याय सरकार के कार्यों की ओर इंगित करने वाले, सरकारी प्रयासों का लेखाजोखा प्रस्तुत करने वाले,साथ ही साथ सामान्य ज्ञान की दृष्टि से अति उपयोगी बन पड़े है। 5. व्यक्तित्व चित्रण में सुप्रसिद्ध लेखिका ऊषा प्रियंवदा का चित्रण करके लेखक ने ये सिद्ध कर दिया कि वह किसी भी मनस्वी, सचेत हृदय को अपने बारे में एवम् व्यक्तित्व के बारे में कलम चलाकर उसका हार्दिक एवम् गहन परिचय दे सकता है, इस बात का स्पष्ट आभास होता है। इसी के साथ डॉक्टर ए के कपूर का मरीजों के प्रति समर्पण को अपनी लेखनी का विषय बनाना ,सहदयता की सूची तैयार करने जैसा है।
6. लगन और तपस्या से बढ़कर कुछ नहीं एवं परिश्रम लगन ईमानदारी ही व्यापार का मंत्र, अध्यायों में जो प्रेरणा दी गई है, वे बातें वर्तमान युगीन-प्रेरकों-श्री सोनू शर्मा, श्रीराम वर्मा, शिव खेड़ा ,रॉबर्ट टी कियोसाकी- जिनको कि हमने खूब पढा है,,की याद दिलाने में सक्षम है।
अन्त में मैं कह सकता हूँ कि यद्यपि नेटवर्क के प्रादुर्भाव एवम् मोबाइल युग में पुस्तके पढ़ना अत्यल्प लोगों का शगल रह गया है तथापि कुछ पुस्तकें ऐसी लिखी जा रही है जिनका रसास्वादन बहुत कुछ देने में सक्षम है। प्रस्तुत पुस्तक “कुछ नए कुछ पुराने ” उन्ही में से एक है।
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