
(ओमप्रकाश ‘सुमन’)
पलिया कलां ( खीरी) यह सर्वविदित है कि दुधवा टाइगर रिजर्व पूरे विश्व में अपनी जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है। इसलिए यहां पूरे देशभर से शोधार्थी प्रायः ही शोध कार्य हेतु आकृष्ट हो रहे हैं। दुधवा की जैव विविधता, इसके प्रति शोधार्थियों का आकृषण एवं प्रायः ही प्रकाश में आ रहे नवीन परिणामों के चलते न केवल अन्य शोधार्थी बल्कि दुधवा के अधिकारी, कर्मचारियों में भी यहां के फ्लोरा एवं फाना के अध्ययन एवं डाटा संग्रह में रुचि तेज हुई है। परिणामतः दुधवा टाइगर रिजर्व के अधिकारी/कर्मचारियों द्वारा वन एवं वन्य जीवों की सुरक्षा हेतु की जा रही पैट्रोलिंग के दौरान पेट्रोलिंग के साथ-साथ नवीन तथ्यों पर भी पैनी एवं सूक्ष्म निगाह रखी जा रही है। इतना ही नहीं संज्ञान में आ रहे नवीन पेड़ पौधे एवं जीवों के बारे में गहन अध्ययन भी प्रक्रिया में आ रहा है। इसी का परिणाम है कि यहां नित्य प्रतिदिन नए-नए अनुसंधान परिणाम प्रकाश में आ रहे हैं।
इसी परिप्रेक्ष्य में संज्ञान में लाया गया है कि सुरेन्द्र कुमार, क्षेत्रीय वन अधिकारी, दक्षिण सोनारीपुर रेंज पैदल पेट्रोलिंग पर थे। पेट्रोलिंग के दौरान जब वह वापसी करने लगे तो उन्हें एक भिन्न प्रजाति का फूलों से युक्त पौधा दिखाई दिया। हालांकि उसके पत्ते अवश्य जाने पहचाने लगे, परंतु पौधे के पुष्प पूरी तरह से भिन्न एवं नवीन लगे। सुरेन्द्र कुमार द्वारा पौधे एवं फूल के फोटोग्राफ लिए गए तथा उनके बारे में अध्ययन किया गया।
पौधे के बारे में गहन अध्ययन उपरांत यह ज्ञात हुआ कि यह पौधा अत्यंत दुर्लभ एवं संकटग्रस्त प्रजाति का है। इसका नाम कैलोट्रोपिस आकिया है। आकिया जिसे हम मदार के नाम से भी जानते हैं। यह दुधवा टाइगर रिजर्व प्रभाग, पलिया-खीरी में पहली बार देखा गया है। वैसे तो पूरे विश्व में आक की मात्र 3 प्रजातियां पाईं जाती हैं जिसमें से 2 प्रजातियां कैलोट्रोपिस जाइजेंटिया और कैलोट्रोपिस प्रोसेरा लगभग हर स्थान पर सामान्य रुप से मिल जाती हैं।
उपरोक्त प्रजातियों में से तीसरी प्रजाति कैलोट्रोपिस आकिया जो पहली बार दुधवा में दिखाई दी है। यह मुख्य रूप से हिमालय की तलहटी और उससे लगे वनों में पाई जाती है। यह अत्यंत दुर्लभ संकटग्रस्त है और बहुत ही कम स्थानों पर देखी गई है। बाकी दोनों प्रजातियों से भिन्न यह प्रजाति साल के वनों और घास के मैदानों में पाई जाती है जो इसके विशिष्ट प्राकृतिक वासस्थल को दर्शाता है। यह प्रजाति मुख्य रूप से भारत के उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल प्रदेश के वनों से के साथ साथ नेपाल के सीमांत क्षेत्रों से भी ज्ञात है।
इस प्रकार नित्य प्रतिदिन नवीन वनस्पतियों के प्रकाश में आने के चलते दुधवा टाइगर रिजर्व प्रभाग, पलिया-खीरी के अधिकारी/कर्मचारियों में जिज्ञासाएं निरंतर बढ़ती जा रही है। आक जिसका वानस्पति नाम Calotropis gigantean है। इस पौधे के अध्ययन में सहयोग करने वाले रमेश कुमार, वरिष्ठ सहायक जो वन एवं वन्य जीवों के अध्ययन व विश्लेषण में गहन रुचि रखते हैं। उनका इस संबंध में कथन है कि आक को मदार, अर्क, अकौआ व अकवन आदि नामों से भी जाना जाता है। आक का हर अंग दवा है, हर भाग उपयोगी है। यह सूर्य के समान तीक्ष्ण तेजस्वी और पारे के समान उत्तम तथा दिव्य रसायनधर्मा हैं। कहीं-कहीं इसे ‘वानस्पतिक पारद‘ भी कहा गया है। आक का पौधा विषैला भी होता है। आयुर्वेद संहिताओं में भी इसकी गणना उपविषों में की गई है। इसलिए आर्युवेद विशेषज्ञ के परामर्श के बिना इसका उपयोग घातक हो सकता है।
आक की प्रजाति कैलोट्रोपिस आकिया जो पहली बार दुधवा में दिखाई दी है। इस संबंध में दुधवा टाइगर रिजर्व प्रभाग, पलिया-खीरी के उप निदेशक श्री जगदीश आर0 का कहना है कि वैसे तो दुधवा टाइगर रिजर्व वन्य जीवों के साथ-साथ अलौकिक वनस्पतियों से परिपूर्ण है। अभी भी ऐसे बहुत से जीव एवं वनस्पतियॉ हैं, जो पहचान में नहीं आ सकी हैं। इस संबंध में दुधवा टाइगर रिजर्व के अधिकारियों/कर्मचारियों में बढ़ रही उत्सुकता दुधवा में पाई जाने वाली दुर्लभ वनस्पतियों के अनुसंधान में सहायक होगी। यह प्रसन्नता का विषय है कि एक और दुलर्भ और संकटग्रस्त प्रजाति संज्ञान में आई है।
इस संबंध में दुधवा टाइगर रिजर्व के मुख्य वन संरक्षक एवं फील्ड निदेशक, दुधवा टाइगर रिजर्व, लखीमपुर-खीरी डॉ0 एच0 राजामोहन का कहना है कि दुधवा टाइगर रिजर्व में अनुसंधान के संबंध में बढ़ रही जिज्ञासाएं हर्ष का विषय है। इससे दुधवा टाइगर रिजर्व में पाई जानी वाली ऐसी वनस्पतियॉ एवं जीव जो अभी तक प्रकाश में नहीं आ सके हैं, वह भी संज्ञान में आ सकेंगें और ऐसे अनुसंधान आने वाले समय में शोधार्थियों को अपनी ओर और अधिक आकृष्ट करेंगे।