(ओमप्रकाश ‘सुमन’)

पलियाकलां- (खीरी)शाहजहांपुर में शुक्रवार को होली के मौके पर बहुचर्चित ”बड़े लाट साहब” का जुलूस निकाला गया। जुलूस की शुरुआत सुबह 9:30 बजे कूंचा लाला मोहल्ला स्थित सुरेंद्र सिंह सेठ के घर के बाहर से हुई। यहां से जुलूस को पैदल चौकसी नाथ मंदिर ले जाया गया। जहां बड़े लाट साहब को भैंसा गाड़ी पर तखत डाला जाता है तखत पर मजबूती से कुर्सी रखी जाती है उसे पर लाट साहब को हेलमेट वगैरा लगाकर बैठाया गया। उसकी सुरक्षा के लिए जो पुलिसकर्मी भी उनके साथ लगाए जाते हैं।इसके बाद जुलूस चौक कोतवाली के अंदर पहुंचा। जहां चौक कोतवाली राजीव तोमर ने बड़े लाट साहब को ईनाम के तौर पर शराब भेंट की और सलामी दी। यहां से यह जुलूस चौक किला, केरूगंज चौराहा, छाया कुआं, मिशन स्कूल तिराहा, बेरी चौकी, अंटा चौराहा, जीआईसी चौराहा, सदर थाने होते हुए बाबा विश्वनाथ मंदिर पहुंचा। जहां 10-15 मिनट रुकने के दौरान दर्शन कराए गए।जुलूस शहीद उद्यान के पास से एसपी कॉलेज रोड होते हुए पंखी चौराहा, बहादुरगंज, मशीनीरी मार्केट, घंटाघर, अंजान चौकी, आंखवाला अस्पताल, मालखाना मोड़, कच्चा कटरा मोड़, मंडी मोड़, फिर चौक कोतवाली के सामने से सेठ कालीचरण रोड, बंगला सरोदी तक गया। वापस आकर बच्चा बाबू वाली गली सिंगई में पहुंचा। इसके बाद वहां से लौटकर फिर सुरेंद्र सिंह वाली गली में पहुंचकर दोपहर 1:00 बजे यह जुलूस समाप्त हो गया। जुलूस में शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हआ। इस दौरान करीब 10 हजार लोग थे।

अब जानते हैं क्या है “लाट साहब” के जुलूस का इतिहास…लाट साहब मतलब अंग्रेजों के शासन के क्रूर अफसर। जिनके विरोध में हर साल होली में ये जुलूस निकाला जाता है। पहले एक युवक को लाट साहब के रूप में चुना जाता है। उसका चेहरा ढक कर उसे जूते की माला पहनाकर बैलगाड़ी पर बैठाकर तय मार्ग पर घुमाया जाता है। इस दौरान लाट साहब पर अबीर-गुलाल के साथ जूते-चप्पल भी फेंके जाते हैं।अबीर-गुलाल के साथ जूते-चप्पल भी फेंके जाते हैं।
शाहजहांपुर में लाट साहब के दो जुलूस निकाले जाते हैं। जिसको छोटे और बड़े लाट साहब के नाम से जाना जाता है। कमेटी की तरफ से लाट साहब बनने वाले को 21 हजार रुपए का इनाम, पांच जोड़ी कपड़े और जूते चप्पल दी जाती है। चौक कोतवाली उनको सलामी देते हैं साथ ही नजराने के रूप में शराब की बोतल भी देते हैं।.कमेटी के आयोजक जुलूस को शांतिपूर्ण संपन्न कराने में अहम भूमिका निभाते हैं। पुलिस प्रशासन जुलूस को संपन्न कराने के लिए एक महीने पहले से तैयारियां शुरू कर देता है। इतिहासकार की माने तो ये परम्परा 300 साल पुरानी हैं। पहले इसका नाम नवाब साहब था लेकिन आपसी सौहार्द न बिगड़े इसके लिए जुलूस का नाम लाट साहब कर दिया गया।

लाट साहब बनने की प्रक्रिया
इस बार अलग अलग जिलों से लाट साहब बनने वाले लोग जुलूस कमेटी के संपर्क में आ चुके हैं। इस बार एक नहीं बल्कि कई लाट साहब की व्यवस्था कमेटी ने की है। उनको बुलाने के बाद उनका मेडिकल कराया जाता है। उनकी तीन से चार दिन तक खूब मेहमानवाजी की जाती है। उनको जमकर शराब पिलाई जाती है, अच्छा भोजन दिया जाता है।

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